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Former Indian PM Dr Manmohan Singh Passed Away at AIIMS

Former Indian PM Dr Manmohan Singh Passed Away at AIIMS
Former Indian PM Dr Manmohan Singh Passed Away at AIIMS

नई दिल्ली: Manmohan Singh: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और फाइनैन्स मिनिस्टर रहे डॉक्टर मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में दिल्ली के AIIMS में निधन हो गया। शाम उनकी तबीयत बिगड़ने पर दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उन्होंने आखिरी सांस ली. मनमोहन सिंह जीते जी अपने गांव नहीं जा पाए। जिससे उनकी आखरी इच्छा अधूरी रह गई। उनकी पाकिस्तान स्थिति अपने पुश्तैनी गांव जाने की इच्छा थी, जिसे वे पूरा नहीं कर पाए.

पाकिस्तान में पैदा हुए डॉक्टर मनमोहन सिंह साहब
मनमोहन सिंह का जन्म अविभाजित भारत के पाकिस्तान प्रांत में साल 1932 में हुआ। जिस गांव में मनमोहन पैदा हुए, वह अब पाकिस्तान में पड़ता है. मनमोहन के गांव का नाम गाह था, जो पाक की राजधानी इस्लामाबाद के करीब 100 किमी दूर है. अपने पुश्तैनी गांव के ही प्राइमरी स्कूल में मनमोहन सिंह ने चौथी तक की शिक्षा ली।  विभाजन के बाद मनमोहन सिंह का परिवार भारत आ गया था.

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मनमोहन सिंह को भारत की अर्थव्यवस्था में उदारीकरण लाने का श्रेय दिया जाता है। वे पीवी नरसिम्हा राव सरकार (1991-96) में वित्त मंत्री रहे थे। उन्हे पीवी नरसिम्हा राव ने तब एक आला अफसर पीसी अलेक्जेंडर की सलाह पर डॉ. सिंह को वित्त मंत्री बनाया था। राव ने मनमोहन से कहा था कि अगर आप सफल हुए तो इसका श्रेय हम दोनों को जाएगा। अगर आप असफल हुए तो सिर्फ आपकी जिम्मेदारी होगी।

Former Indian Prime Minister Dr. Manmohan Singh has passed away at the All India Institute of Medical Sciences (AIIMS). Dr. Singh, who served as the Prime Minister of India from 2004 to 2014, breathed his last at AIIMS. His demise marks a significant loss for the nation.

दादा की हो गई थी हत्या
मनमोहन सरकार में मंत्री रहे राजीव शुक्ला ने एक यूट्यूब चैनल को इंटरव्यू में बताया कि मनमोहन सिंह की मां का निधन तभी हो गया था जब वह बहुत छोटे थे।  मनमोहन को उनके दादा ने ही पाला था। लेकिन आजादी के दंगों में उनके दादा की हत्या कर दी गई।  इस बात ने डॉक्टर साहब के मन पर गहरा आघात हुआ था। यही वजह है कि मनमोहन रावलपिंडी तो गए।  लेकिन अपने गांव नहीं गए।

मैं स्कूल देखना चाहता हूं
राजीव शुक्ला से बात करते हुए उन्होंने बताया कि मनमोहन सिंह ने एक बार मुझसे कहा था कि मेरा पाकिस्तान में अपने पत्रक गाँव जाने की बहुत अभिलाषा है। शुक्ल ने उनसे पूछा कि वे पाकिस्तान में किस जगह जाना चाहते हैं? इस पर मनमोहन बोले- मैं अपने गांव जाना चाहता हूं। इस पर शुक्ला ने फिर पूछा वहां अपना पुश्तैनी घर देखना चाहते हैं? तब डॉक्टर साहब बोले- नहीं, मेरा घर तो बहुत पहले खत्म हो गया. मैं तो अपना स्कूल देखना चाहता हूं, जहां चौथी तक पढ़ाई की। और वहाँ उनका बचपन वीता था।

अधूरा रह गया डॉक्टर साहब का सपना
मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री रहते हुए पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को अपने गांव में विकास कार्य कराने के लिए चिट्ठी भी लिखी थी। जिस पर परवेज मुसरफ ने कोई जबाब नहीं दिया पर कुछ समय बाद गांव में खूब विकास हुआ. जिस स्कूल में मनमोहन पढ़ते थे। उसका नाम ‘मनमोहन सिंह गवर्नमेंट बॉयज प्राइमरी स्कूल’ रखा गया। हालांकि, मनमोहन सिंह अपने गांव को कभी विजिट नहीं कर पाए और उनका ये सपना अधूरा रह गया।

नरसिम्हा राव के शपथ ग्रहण से एक दिन पहले मनमोहन को फोन गया। नरसिम्हा राव 1991 में प्रधानमंत्री बने तो वे कई चीजों के एक्सपर्ट बन चुके थे। स्वास्थ्य और शिक्षा मंत्रालय वे पहले देख चुके थे। वो विदेश मंत्री भी रह चुके थे। उनका एक ही विभाग में हाथ तंग था और वो था वित्त मंत्रालय। प्रधानमंत्री बनने से दो दिन पहले कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा ने उन्हें 8 पेज का एक नोट दिया था, जिसमें बताया गया था कि भारत की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है।

नरसिम्हा राव ने उस समय के अपने सबसे बड़े सलाहकार पीसी अलेक्जेंडर से पूछा कि क्या आप वित्त मंत्री के लिए ऐसे व्यक्ति का नाम सुझा सकते हैं, जिसकी इंटरनेशनल लेवल पर स्वीकार्यता हो। अलेक्जेंडर ने उन्हें रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर रह चुके और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के निदेशक आईजी पटेल का नाम सुझाया।

आईजी पटेल दिल्ली नहीं आना चाहते थे, क्योंकि उनकी मां बीमार थीं और वे वडोदरा में थे। फिर अलेक्जेंडर ने ही मनमोहन सिंह का नाम लिया। अलेक्जेंडर ने शपथ ग्रहण समारोह से एक दिन पहले मनमोहन सिंह को फोन किया। उस समय वे सो रहे थे, उन्हें उठाकर इस प्रस्ताव के बारे में बताया गया तो उन्होंने इस पर विश्वास नहीं किया।

इसलिए ऐतिहासिक माना जाता है 1991 का बजट… 1991 में नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री रहते हुए मनमोहन सिंह ने बजट में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण से जुड़ी अहम घोषणाएं की, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को नई रफ्तार मिली। इसके चलते देश में व्यापार नीति, औद्योगिक लाइसेंसिंग, बैंकिंग क्षेत्र में सुधार और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति से जुड़े नियम-कायदों में बदलाव किए गए। जिससे भारत ने औधयोगिक छेत्र में नई उचाइयाँ हंसिल की।

2004 में ऐसे आया मनमोहन का नाम 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने UPA गठबंधन बनाया और कई दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई। सोनिया गांधी 1998 में राजनीति में आई थीं और 2004 में पार्टी की कमान संभाल रही थीं। लोकसभा चुनाव के ओपिनियन पोल में भाजपा को दो-तिहाई बहुमत मिलने की भविष्यवाणी की गई थी। भाजपा जीत के भरोसे में थी। नतीजे आए तो बीजेपी 182 सीटों से लुढ़ककर 138 सीटों पर आ गई थी। कांग्रेस 114 से बढ़कर 145 सीटों पर पहुंच गई। हालांकि पीएम कौन बनेगा, इस बात को लेकर अनिश्चितता थी।

UPA सरकार में विदेश मंत्री रहे नटवर सिंह अपनी किताब ‘वन लाइफ इज नॉट एनफ’ में लिखते हैं, ‘उस समय गांधी परिवार पसोपेश में था। राहुल ने अपनी मां से कहा कि वो PM नहीं बनेंगी। राहुल अपनी मां को रोकने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। दोनों मां-बेटे के बीच ऊंची आवाज में बातें हो रही थीं। राहुल को डर था कि मां PM बनीं तो उन्हें भी दादी और पिता की तरह मार दिया जाएगा।

नटवर लिखते हैं, ‘राहुल बेहद गुस्से में थे। उस वक्त मैं, मनमोहन सिंह और प्रियंका वहीं थे। बात तब बढ़ गई, जब राहुल ने कहा कि मां मैं आपको 24 घंटे का टाइम दे रहा हूं। आप तय कर लीजिए क्या करना है? आंसुओं से भरी मां (सोनिया) के लिए यह असंभव था कि राहुल की बात को वे दरकिनार कर दें।’

18 मई 2004 की सुबह सोनिया गांधी सुबह जल्दी उठीं। राहुल और प्रियंका के साथ चुपचाप घर से बाहर निकल गईं। सोनिया की कार राजीव गांधी की समाधि पहुंची। तीनों थोड़ी देर तक समाधि के सामने बैठे रहे।

उसी दिन शाम 7 बजे संसद के सेंट्रल हॉल में कांग्रेस सांसदों की बैठक हुई। सोनिया गांधी ने राहुल और प्रियंका की तरफ देखकर कहा- मेरा लक्ष्य कभी भी प्रधानमंत्री बनना नहीं रहा है। मैं हमेशा सोचती थी कि अगर कभी उस स्थिति में आई, तो अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनूंगी। आज वह आवाज कहती है कि मैं पूरी विनम्रता के साथ ये पद स्वीकार न करूं।

इसके बाद दो घंटे तक कांग्रेस के सांसद सोनिया को पीएम बनने के लिए मनाते रहे, लेकिन नाकामी हाथ लगी। इसी दौरान UP के एक सांसद ने कहा, ‘मैडम आपने वो मिसाल कायम की है, जैसा पहले महात्मा गांधी ने की है। आजादी के बाद जब देश में पहली बार सरकार बनी तो गांधी जी ने भी सरकार में शामिल होने से मना कर दिया था। तब गांधी जी के पास नेहरू थे।

सोनिया जानती थीं कि उनके पास एक तुरुप का पत्ता था और वो थे डॉक्टर मनमोहन सिंह। कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री पद के लिए मनमोहन सिंह के नाम का ऐलान कर दिया गया। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने किताब ‘टर्निंग पॉइंट्सः ए जर्नी थ्रू चैलेंजेज’ में लिखा कि UPA की जीत के बाद राष्ट्रपति भवन ने सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने से संबंधित चिट्ठी भी तैयार कर ली थी, लेकिन जब सोनिया गांधी उनसे मिलीं और डॉ. मनमोहन सिंह का नाम आगे किया तो वह चकित रह गए थे। बाद में दोबारा चिट्ठी तैयार करनी पड़ी थी। मनमोहन सिंह ने 22 मई 2004 से 26 मई 2014 तक प्रधानमंत्री पद संभाला।

2009 में राहुल ने कहा था- मैं पीएम नहीं बनना चाहता 2009 लोकसभा चुनाव में यूपीए को 262 सीटें मिलीं। एक बार फिर प्रधानमंत्री के नाम को लेकर अटकलों का दौर शुरू हो गया। सियासी गलियारों में राहुल गांधी का नाम उछाला गया। सीनियर जर्नलिस्ट वीर सांघवी अपनी बुक ए रूड लाइफ: द मेमॉयर में लिखते हैं- मनमोहन सिंह दूसरी बार पीएम बनने को तैयार नहीं थे। उन्होंने सोनिया के सामने शर्त रखी थी कि बतौर प्रधानमंत्री जब कार्यकाल पूरा करने का मौका मिलेगा, तभी दोबारा पद संभालेंगे।

Manmohan Singh Death HIGHLIGHTS: State funeral for ex-PM to be held tomorrow at 11:45 am, say sources – India Today

LIVE: PM Modi pays tribute to former PM Dr. Manmohan Singh during State funeral

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