Basant panchmi 2025Basant panchmi 2025
Basant panchami 2025 बसंत पंचमी पर बन रहे हैं ये शुभ योग, जानें पूजा का सही समय उपाय
सनातन धर्म में वसंत पंचमी ( Basant Panchami 2025 Shubh Yog) का पर्व अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इस पर्व को हर साल माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर उत्साह के साथ मनाया जाता है। वसंत पंचमी को वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक माना जाता है। इस बार वसंत पंचमी पर कई शुभ योग बन रहे हैं। आइए जानते हैं इन शुभ योग के बारे में
By -Arun Krishna Shastri
लेखक-अरुण कृष्ण शास्त्री। वसंत पंचमी के शुभ अवसर पर ज्ञान, संगीत और कला की देवी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही प्रिय चीजों का भोग लगाया जाता है। माना जाता है कि मां सरस्वती की उपासना करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। साथ ही पढ़ाई में की गई मेहनत सफल होती है। पंचांग के अनुसार, इस बार वसंत पंचमी के दिन कई शुभ योग (Basant Panchami 2025 Shubh Yog) का निर्माण हो रहा है। ऐसे में आइए इस आर्टिकल में जानते हैं कि मां सरस्वती की पूजा का शुभ मुहूर्त और योग के बारे में
वसंत पंचमी 2025 डेट और शुभ मुहूर्त (Basant Panchami 2025 Date and Shubh Muhurat)
।वसंत पंचमी 2025 डेट और शुभ मुहूर्त (Basant Panchami 2025 Date and Shubh Muhurat)
वसंत पंचमी 2025 शुभ योग (Basant Panchami 2025 Shubh Yog)
पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पंचमी तिथि पर शनि देव सुबह 08 बजकर 51 मिनट पर पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में गोचर करेंगे। इस दिन शिव योग, सिद्ध योग साध्य योग और रवि योग बन रहे हैं।
सूर्योदय – सुबह 07 बजकर 09 मिनट पर
सूर्यास्त – शाम 06 बजकर 01 मिनट पर
चंद्रोदय- सुबह 09 बजकर 34 मिनट पर
चंद्रास्त- सुबह 10 बजकर 11 मिनट पर
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विद्या और संगीत की देवी मां सरस्वती को कहा जाता है भारती?
वसंत के जन्म के सुंदर रूपक के साथ विद्यापति वसंत के राजकीय वैभव का वर्णन करते हुए कहते हैं- ‘आएल रितुपति राज बसंत। ऋतुओं के राजा वसंत का आगमन हुआ। उसके आगमन पर केसर के पुष्पों ने स्वर्णदंड को धारण किया। वृक्षों के नए पत्ते राजा के लिए आसन बने। राजा वसंत के सिर पर चंपा के पुष्पों का छत्र सजाया गया है।
आचार्य मिथिलेशनन्दिनीशरण (सिद्धपीठ श्रीहनुमत निवास, श्रीअयोध्या धाम)। वसंत की आहट है। उसकी पगचाप सुनाई पड़ने लगी है। रूप-रंग-रस और सौरभ से समृद्ध हुई धरती अपने हृदय का संचित राग उड़ेल देने को मानो उत्सुक है। हो भी क्यों न! वसंत सभी ऋतुओं का अधिपति जो है, यह ऋतुराज है। इसका आश्रय पाकर चराचर जगत में सर्वत्र माधुर्य और मनोहरता का प्रसार हो जाता है। वेदों के अनुसार वसंत इस सृष्टि-यज्ञ का घृत है-‘वसंतोऽस्यासीदाज्यं।’
यह ब्रह्मांड, जिसमें हमारा जीवन अधिष्ठित है, वसंत इसका घी है, ग्रीष्म ईंधन है और शरद हवि है। वसंत के घी होने में उसका वैशिष्ट्य निहित है। घी स्नेह है, यह रस का-राग का कारक है। महाकवि कालिदास इस वसंत को प्रिय कहते हैं- ‘सर्वं प्रिये चारुतरं वसंते।’ मैथिल-कोकिल विद्यापति भी वसंत का गुणगान करने से चूकते नहीं। वे वसंत के जन्म की कथा कहते हैं। उनके अनुसार श्रीपंचमी वसंत-प्रसवा तिथि है। नौ महीने और पांच दिन के बाद वह शिशु वसंत को प्रकट करने वाली है।
वसंत के जन्म के सुंदर रूपक के साथ विद्यापति वसंत के राजकीय वैभव का वर्णन करते हुए कहते हैं- ‘आएल रितुपति राज बसंत। ऋतुओं के राजा वसंत का आगमन हुआ। उसके आगमन पर केसर के पुष्पों ने स्वर्णदंड को धारण किया। वृक्षों के नए पत्ते राजा के लिए आसन बने। राजा वसंत के सिर पर चंपा के पुष्पों का छत्र सजाया गया है।
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